ऊधो बाराबांट गया ।

ऊधो बाराबांट गया ।
टनों बोझ लादे यह गदहा किस किस घाट गया ।।


करुणा कातर चीपों-चीपों
हास्य प्रसंग बना
कान उमेठे क्रोधित धोबी
ऊपर लट्ठ तना
क्रुर विशेषण गायक वाला आँसू चाट गया ।।

क्षुद्र तलैया नाले नदिया
कैसी लोल तरंग
दूर रही कलुषित अंगों से
परिमल पावन गंग
कशल भगीरथ खास क्षेत्र हित धारा काट गया ।।

कोमल कविता नहीं पुतलियाँ
आँखें शुष्क निबन्ध
कटु यथार्थ पथरीला जीवन
जर्जर जार कबन्ध
बिकना, बंधना तंग तबेले नींद उचाट गया ।।

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