ऊधो पूत मवेशी निकला ।।

ऊधो पूत मवेशी निकला ।
श्यामलकाठी वर्णशंकरी पिंगलकेशी निकला ।।


तोड़ गुरुत्वाकर्षण सारे
शून्य कक्ष में उछला
मांटी से संपृक्त नहीं है
रद्द कर चुका पिछला
अर्थहीन है कजरी विरहा
आल्हा गायक पगला
तुलसी सूर कबीरा मीरा
कौन खेत की मूली
आयातित दर्पण ही देखें
घ्ग में सरसों फूली
देख घमड़ते बादल इसके
भीतर यक्ष न जगता
लहराती फसलों में नद सा
रंच न वक्ष उमगता
संस्कृति मूत्र विसर्जन वाली
उठी श्वानवत टांगें
बीच सड़क पर नंगा नाचे
पितर क्षमा हैं मांगे
अंग्रेजी ध्वनियों पर इसका
रोम रोम है मचला
लज्जित कोख, छुपाती मुखड़ा अंक ग्लानि से पिघला ।
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