ऊधो यक्ष प्रश्न के उत्तर
पूछ रहा है मुझसे मैं तो भट्टाचार्य निरक्षर।।
तिनके चार मिले थे केवल
बने नशेमन कैसे
लड़ता नंगे हाथ कठिन-
जीवन का रन कैसे
शत्रु सैन्य से पटा इलाका जगह न बाकी तिलभर।।
एक त्रासदी सांसें लेना
भय के कंपित घेरे,
कटे फटे शव घायल अणु-अणु
पानी-पानी टेरे
चोंच डूबाते गिद्द घाव में फूटे शोमित निर्झर।।
सात्विक क्रोध रक्त में लेकिन
हिंसा कभी न जागी
युद्ध क्षेत्र के लिये निरर्थक
कोमल मन अनुरागी
शोषम करते रहे उम्र भर पाजी ढाई अक्षर।।
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