ऊधो टूटेगी तटबन्ध।।
इतने बादर इतना पानी अंतर्यामी अंध।।
हाड़ मांस माटी का पिंजर
बिजली बज्र रकीब
पीड़ा के गज अनथक झूमें
अत्याचार नकीब
मुरली फूँक रही है पावक कोयला सातों रंध।।
रोम रोम पर्याय क्षवण के
सबका कथ्य सुना
दर्दमंद करुणार्द्र प्राण ने
रपटिल पंथ चुना
रिसे मवाद स्नायुमंडल में पसरे पाटल गंध।।
एक अकंठित साथी मिलता
नग्र निर्वसन नाते
छाती पर यह शिला न होती
हानि लाभ बंट जाते
यों तो साथ कारवां पूरा लेकिन सभी कबंध।।
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