ऊधो रंच न मन आंनदा।।

ऊधो रंच न मन आंनदा।।
धिक ऐसी सांसों का जीवन जिसमें ताल न छंदा।।


थाका कसबल दृष्टि श्रवण
सब क्रमशः पड़ते मंदा
कितनी निलज चाह जीने की
मरण न मांगे बन्दा

अर्थ रज्जु गर्दन को जकड़े
गांठ लगाये फन्दा
सबसे वृहत सवाल भूख का
दिन में दिखते चन्दा

नस्ल कमल की गुम होती है
सर में कीचड़ गंदा
व्यर्थ हुए गुरुदेव निराला साथर्क गुलशन नन्दा।।
----