उधों माटी नभ तन हेरे।।
बादल के वितरण में गड़बड़ चातक चौमुख टेरे।।
घटाटोप मंडराते घिरते
गरजें बजें दमामा
सूखे सावन जलते भादों
झूठमूठ हंगामा
बिजली तड़पे लपके टूटे
झोपड़पट्टी दहले
तिनके उड़ते भू से क्षिति तक
कुटिल बवंडर टहले
आश्वासन के बगुले उजले बूंद न फटके नेरे।।
नहरों का जल काट-काट कर
पी जाती है लाठी
बंदूकों की नली गढ़ रही
ऊँटी नीची काठी
हाथ याचना में उठते, या
रहते तन पर लटके
दूबर एततार सांसों का
प्यासे हंसा अटके
सीने पर सिल लदी सब्र की अनमिट अंक उकेरे।।
----