ऊधो इस युग में क्या गायें।
औरंगजेब अयातुल्ला ये गाता कंठ दबायें।।
हथकड़ियाँ बेड़ी औ कोड़े
दुर्लभ तोहफे पायें
छंद गीत के हत्यारे अब
रचनाकार कहायें
राजनीति के तलुवे चाटें
कीर्ति किरीट लगायें
जीवन दर्शन बहस चलाना
मुद्दे रोज उठायें
जिह्वशूर बुद्धिजीवी ये
संस्कृति पार लगायें
गातेगाते मरे निराला
पागल ही कहलायें
सुविधाजीवी छद्म मुखौटे
मठाधीश बन जायें
भूखा बचपन तृषित जवानी
तन मन बलि समिधायें
छुप अनछुए दर्द द्रवित हैं
कातर प्राण नहायें
चारों ओर ठगों के डेरे इनसे गाँठ बचायें।।
----