ऊधो मैं मूरख मतिमन्द ।।

ऊधो मैं मूरख मतिमन्द ।।
चंद्रगुप्त चाणक्य नहीं जो खोद उखाडूँ नंद ।।


धँसती नींव खिसकती ईंटे
प्रेत छाँह घर मेरा
चमगादड़ उल्लू सांपों का
इसमें सतत बसेरा
चीटी केंचुए खटमल मच्छर चौमुख मल की गंद ।।

बंद घेराव आग हड़तालें
आरक्षी का डंडा
इतने डैनों सेवित पालित
लोकतंत्र का अंडा
हाथ पोलियो मारे मेरे कर न सके कुछ बंद ।।

हिन्दू मानस मुद्रित अंकित
लेंगे प्रभु अवतार
दीनदयालु प्रगट हों जग में
दुःख करेंगे क्षार
तम के बादर पर्वत ऊपर लिखें किरन के छंद ।।
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