ऊधो रक्त श्वेत में डूबा।
कोड़ों ने है खाल उधेड़ी यह दुश्मन का सूबा।।
चंदन वन की रुह देह में
चौमुखि सुरभि बिखेरी
यत्न आदमी रह पाने के
बने राख की ढेरी
सोने के आराध्य यहाँ के चाँदी की महबूबा।।
नाजी शिविर यातना चैंबर
पग पग क्रूर कसाई
जड़ से उखड़े धरती छूटी
मुँह बाये है खाई
मुँह बाये है खाई
धरा रह गया सूने दीवट हर रोशन मनसूबा।।
अपमानों का केंसर काटे
छीजे धुनी मनीषा
उगते शूल, त्रिशूल शून्य में
सब कुछ जकड़े मीसा
शबनम रतन धूल पर बिखरे अर्ध्य सूर्य से ऊबा।।
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